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अलार्म बजाना

आपातकालीन स्थितियों में बेहतर चेतावनी देकर कई जानें बचाई जा सकती हैं. Google आपातकालीन सहायता टीम लोगों की मदद करने के लिए एआई (AI) का सहारा ले रही है.

इस सितंबर में फ़्लोरेंस नाम का जो समुद्री तूफ़ान नॉर्थ कैरोलीना के किनारे पहुंचा, वह इससे दो हफ़्ते पहले अटलांटिक महासागर में बन रहा था. फ़्लोरेंस एक असामान्य तरीके से धीरे-धीरे बढ़ता हुआ तूफ़ान लग रहा था. एक ऐसा तूफ़ान, जो बाढ़ की चपेट में आ सकने वाले इलाकों में रिकॉर्ड बारिश कर सकता था. समुद्री तूफ़ान के आने में हुई इस देरी की वजह से लोगों के पास इससे निपटने के लिए तैयार होने का ज़्यादा समय था.

“इतने जटिल सिस्टम के बावजूद इस आपदा के बारे में कई दिन पहले से पूर्वानुमान दिया जा सका”

सारा जेमीसन, राष्ट्रीय मौसम सेवा विभाग की वरिष्ठ सेवा जलविज्ञानी

इस वजह से, लोगों को स्थितियों के बारे में सूचित किया गया, बचाव के काम शुरू किए गए और सभी को आपदा के बारे में चेतावनियां भेजी गईं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हर व्यक्ति तूफ़ान की चपेट में आने से बच पाया.

मोर श्लेसिंगर की तस्वीर

मोर श्लेसिंगर, आपातकालीन सहायता के लिए सॉफ़्टवेयर इंजीनियरिंग प्रबंधक

जिस तरह की आपात स्थिति फ़्लोरेंस के आने से पैदा हुई, वैसी स्थितियों में अक्सर लोग Google पर अपने सवालों के जवाब ढूंढते हैं. Google के सॉफ़्टवेयर और इंजीनियरिंग प्रबंधक, मोर श्लेसिंगर का कहना है कि “हमारा मकसद दुनिया भर की जानकारी को व्यवस्थित करके उसे सभी तक पहुंचाना है.” “लोगों को आपदा के समय इस जानकारी की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है.”

2010 में, इज़राइल की कारमेल पहाड़ियों में आग लग गई थी. Google के इंजीनियर्स को ऑफ़िस की खिड़की से ही आग दिखाई दे रही थी, लेकिन उन्हें ऑनलाइन इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इसलिए उन्होंने ऐसी स्थितियों में पहले ही तैयार रहने के लिए काम करना शुरू किया. कुछ ही घंटों में, एक छोटी सी टीम ने स्थानीय सरकार के साथ मिलकर संबंधित आपातकालीन संसाधन तैयार कर लिए और उन्हें 'Google सर्च' के ज़रिए उपलब्ध करवाया.

सबसे पहले सूचना देने के इस अनुभव से यह समझ आया कि आपातकालीन परिस्थितियों में व्यवस्थित तरीके से सही जानकारी देना कितना ज़रूरी है.

हम सभी को इसके ज़रिए [समय पर] जानकारी मिल जाती है और हम जानते हैं कि इसे सब तक कैसे पहुंचाना है, [और] हम पहुंचाते भी हैं, क्योंकि आखिरकार हमारा उद्देश्य यही है कि लोग आपदा की सबसे खतरनाक परिस्थितियों में भी कम समय में सही फ़ैसला कर पाएं.

योसी मैटियस, Google के वाइस प्रेसिडेंट इंजीनियरिंग और इज़राइल के आर एंड डी सेंटर के प्रमुख.

तेज़ आग लगने पर उसकी जानकारी दिखाने के लिए SOS अलर्ट सुविधा वाला फ़ोन

SOS अलर्ट

SOS अलर्ट एक ऐसा टूल है जो किसी घटना के दौरान और उसके बाद इस्तेमाल होता है. इसकी मदद से मैप, 'सर्च' और पार्टनर से मिलने वाले डेटा को एक ही जगह पर देखा जा सकता है. तूफ़ान, बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ कई तरह की आपदाओं के दौरान और उनके बाद आपातकालीन स्थितियों में ये टूल सुरक्षा संसाधन उपलब्ध करवाते हैं.
सर्दियों में आने वाले तूफ़ान की जानकारी दिखा रहा 'सार्वजनिक अलर्ट' सुविधा वाला फ़ोन

सार्वजनिक अलर्ट

सार्वजनिक अलर्ट ऑनलाइन आपातकालीन ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम की तरह काम करता है, जिसमें संबंधित डेटा इकट्ठा किया जाता है और मैप, 'सर्च' और दूसरी जगहों पर आपातकालीन संपर्क जानकारी उपलब्ध करवाई जाती है. इस समय 12 देशों में सार्वजनिक अलर्ट के ज़रिए आपातकालीन सहायता उपलब्ध करवाई जा रही है और इस सेवा को आगे बढ़ाने की योजना है.
खतरनाक परिस्थितियों में राहत की बात यह है कि कम से कम आपको यह जानकारी तो मिल ही जाती है कि क्या चल रहा है. हमें सबसे ज़्यादा डर तब लगता है, जब हमें किसी बात की पूरी जानकारी नहीं होती.

मोर श्लेसिंगर, आपातकालीन सहायता के लिए सॉफ़्टवेयर इंजीनियरिंग प्रबंधक.

Google में पिछले कुछ दशकों में आपातकालीन सहायता का काम अलग-अलग रूपों में होता आया है और अब यह 100 से ज़्यादा सदस्यों वाली आधिकारिक टीम है जो दुनिया भर में फैले अपने दसियों दफ़्तरों से काम करती है. 2017 के आखिर में 'SOS अलर्ट' लॉन्च किए जाने के बाद से, आपातकालीन सहायता टीम ने जो टूल बनाए, वे दुनिया भर में 200 से ज़्यादा अलग-अलग तरह की आपदा की स्थितियों में इस्तेमाल हुए हैं और इनके ज़रिए दी गई जानकारी 1.5 अरब से ज़्यादा बार देखी गई है. इस दिशा में आगे बढ़ने का जज़्बा इसलिए मिलता है, क्योंकि टीम इस मिशन को आगे बढ़ाना चाहती है. इंजीनियरिंग प्रयासों की टीम के लीडर के तौर पर हमसे जुड़े श्लेसिंगर का कहना है “इस मिशन को आगे ले जाने के लिए इन समस्याओं का सामना करने की कोशिश करनी होगी.” “हम यह काम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हमें यह काम सही लगता है.”

जेमीसन का कहना है कि संयुक्त राज्य में, फ़्लोरेंस जैसा तूफ़ान आने पर, जिसका असर उत्तरी और दक्षिणी कैरोलीना के समुद्री तट से जुड़ने वाली कई नदियों पर पड़ा, “परिस्थितियों का अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल हो सकता है, खास तौर पर तब जब बड़ा समुद्री तूफ़ान आया हो.”

इन मामलों में टीम, मैप के रूप में डेटा दे सकती है – जिसमें तूफ़ान के रास्ते, राज्य में या उसकी सीमाओं के दूसरी ओर तूफ़ान से बच निकलने के रास्ते, शरण लेने की जगहों के बारे में लेयर के ज़रिए हाइलाइट करके जानकारी दी जाती है – साथ ही साथ अलर्ट दिए जाते हैं. राज्य और स्थानीय सरकारों के साथ मिलकर काम करने से मैप पर राज्यों में सड़क और ब्रिज के बंद होने संबंधी जानकारी देना आसान हो जाता है. आपातकाल के दौरान लोगों तक जल्द से जल्द उनकी ज़रूरत के मुताबिक सटीक जानकारी पहुंचाना बहुत ज़रूरी होता है.

मौसम के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए बेहतरीन सुविधाएं मौजूद हैं और कई तरीकों से जानकारी हासिल की जा सकती है, लेकिन लोग कुछ वजहों से अपनी जगह छोड़ नहीं पाते. संयुक्त राज्य के हमेशा से बाढ़ की मार झेलते आ रहे इलाकों में भी ऐसा होता है. कुछ परिवार ऐसे होते हैं जो अपना घर छोड़ने पर और कहीं रहने का खर्च नहीं जुटा पाते; कुछ लोगों के पास सुरक्षित जगह तक पहुंचने के लिए ईंधन नहीं होता, तो कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके पास दूसरी जगह जाने के लिए कोई साधन (गाड़ी, मोटरबाइक वगैरह) नहीं होता. आर्थिक मजबूरियों के अलावा कुछ परिवार इसलिए अपनी जगह छोड़कर नहीं जाते, क्योंकि उन्हें लगता है कि खतरे को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है. इसकी वजह से वे चेतावनियों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं या उन पर भरोसा नहीं करते.

आपातकालीन मैप में यूनाइटेड स्टेट्स में आई किसी आपदा के लिए ज़रूरी जानकारी मौजूद होती है. लेकिन, दुनिया के दूसरे हिस्सों में हो रही घटनाएं अलग तरह की और बढ़ती हुई चुनौतियां पेश करती हैं. भारतीय केंद्रीय जल आयोग की 1953 से 2017 तक के बाढ़ के डेटा वाली रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में बाढ़ की वजह से जितनी भी मौतें होती हैं, उनमें से 20 प्रतिशत मौतें भारत में होती हैं – ऐसे में बाढ़ के बारे में पूर्वानुमान और चेतावनी सुविधा उपलब्ध करवाने से काफ़ी महत्वपूर्ण बदलाव आ सकते हैं.

इस साल की शुरुआत में, आपातकालीन सहायता टीम ने इज़राइल की अनुसंधान टीम के साथ मिलकर भारत की गंगा नदी के बेसिन में एक पायलट योजना शुरू की. काफ़ी बड़ी संख्या में लोग इस बेसिन में रहते हैं, यहां मानसून के समय भारी बारिश होती है, बारिश के मौसम में इस इलाके में भयंकर बाढ़ आने का खतरा बना रहता है और समय से सूचना शेयर करने में कठिनाई होती है.
इज़राइली टीम के सदस्य, Overhead Imagery टीम के साथ मिलकर भारत में किसी इलाके के चारों ओर की नदियों के एलिवेशन मैप बनाने के लिए सैटेलाइट इमेजरी और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करते रहे हैं, ताकि बाढ़ के बारे में वे ज़्यादा भरोसेमंद पूर्वानुमान दे सकें. इस जानकारी का इस्तेमाल करके सटीक रूप से यह दर्शाया जाता है कि कौन-कौन से इलाकों में बाढ़ आएगी. फिर इसमें नदी मापन डेटा को शामिल किया जाता है, जिसे भारत सरकार सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराती है. इसके बाद सेल फ़ोन सूचनाओं और 'सर्च' नतीजों की मदद से इसे शेयर किया जाता है.
अब लोगों के लिए ऐसे मैप की सुविधा उपलब्ध है, जिनसे उन्हें आस-पास बाढ़ की संभावना होने पर उसके बारे में जानकारी मिल जाती है – लोगों के पास पहले आपदा की संभावना के बारे में इस तरह जानकारी पाने की सुविधा कभी नहीं थी.

मोर श्लेसिंगर, आपातकालीन सहायता के लिए सॉफ़्टवेयर इंजीनियरिंग प्रबंधक.

सुविधा चालू कर देने के बाद, SOS और सार्वजनिक अलर्ट के ज़रिए पानी के स्तर के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाई जाती है, ऐतिहासिक संदर्भ को देखते हुए बताया जाता है कि पानी का स्तर खतरनाक क्यों है. साथ ही, सूचित किया जाता है कि यह खतरा कितने समय तक बना रह सकता है, कार्रवाई के सुझाव दिए जाते हैं और यह बताया जाता है कि ज़्यादा संसाधन कहां मिल सकते हैं.

यह शुरू से लेकर आखिर तक सुरक्षा के संसाधनों का अहम केंद्र है, जिसमें जानकारी को इस तरह व्यवस्थित किया गया है कि स्थानीय लोग उसे देख सकें और उसे इस्तेमाल कर सकें.

बाढ़ आने वाली है, इसके बारे में पहले से पता होना बहुत अच्छा है, लेकिन हमें उम्मीद है कि हम आपातकालीन स्थितियों के बारे में आसान तरीके से जानकारी उपलब्ध करवा रहे हैं और इससे सुरक्षा के मामलों में सही फ़ैसला लेने में मदद मिल रही है.

मोर श्लेसिंगर, आपातकालीन सहायता के लिए सॉफ़्टवेयर इंजीनियरिंग प्रबंधक.

मौसम के ऐसे बदलाव जिनकी वजह से नदियों पर असर पड़ता है और उनके आस-पास के मैदान बाढ़ के खतरे में आ जाते हैं, उन्हें समझने के लिए बनाए गए ढांचे में मशीन लर्निंग और एआई (AI) की ताकत जोड़ने से बेहतर नतीजे मिल सकते हैं. जैसा कि श्लेसिंगर ने कहा, “इन सभी खास तकनीकों और क्लाउड कंप्यूटिंग को एक-साथ जोड़ देने से” बाढ़ के बारे में बेहतर पूर्वानुमान देना और प्रभावित लोगों की मदद करना आसान हो जाता है.

इस समय, भारत के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में मानसून के दौरान जगह खाली करने के लिए 24-घंटे पहले नोटिस दिया जाता है. ज़मीनी स्तर पर इकट्ठा की गई जानकारी की मदद से, आपातकालीन सहायता और Google शोध टीम यह नोटिस समयसीमा बढ़ाकर 72 घंटे पहले करने की कोशिश कर रहे हैं. समय से पहले पूर्वानुमान देने और यह पक्का करने से कि वे सटीक हों, आपदा प्रभावित इलाकों में लोगों का भरोसा जीता जा सकता है. इससे ऐसा माहौल बन सकता है जिसमें ऐसे इलाकों से ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को निकाला जा सके, जहां नियमित रूप से बाढ़ आती रहती हैं.

भारत में स्थानीय निवासियों से बातचीत करते Google आपातकालीन सहायता टीम के सदस्य सेला नीवो और वोवा अनिसिमोव प्रभावित जगहों का आपातकालीन मैप नतीजा
भारत में नदी की गहराई मापता हुआ नाविक दल

श्लेसिंगर का कहना है कि भविष्य में ज़्यादा जगहों पर टीम के तैयार किए गए साधनों का इस्तेमाल करके और इसके सभी संसाधनों को एक ही जगह पर उपलब्ध करवाकर आसानी से आपातकालीन सहायता दी जा सकेगी. इससे लोगों का भरोसा चेतावनियों और Google की दी हुई जानकारियों पर बढ़ेगा.

आपदा की स्थिति में आपके पास फ़ैसला लेने के लिए बहुत कम समय होता है और इससे आपकी और आपके करीबियों के जीवन पर असर पड़ सकता है. इसलिए जानकारी को कम शब्दों में और सही तरीके से लोगों तक पहुंचाना बहुत ज़रूरी है.

मोर श्लेसिंगर, आपातकालीन सहायता के लिए सॉफ़्टवेयर इंजीनियरिंग प्रबंधक

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