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वैज्ञानिक और सुपरकंप्यूटर कैसे समुद्र के पानी को पीने लायक बना सकते हैं

समुद्र के पानी से नमक हटाना बहुत बड़ी चुनौती है. शायद शोधकर्ताओं के पास इस समस्या का हल है—लेकिन ऐसा करने के लिए प्रोसेस करने की बहुत ज़्यादा क्षमता की ज़रूरत होगी.

रेने चुन

अलेक्सांद्र नोय के पास एक बेहद छोटे टूल के लिए बहुत बड़ी योजनाएं हैं. वह लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेट्री में वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक हैं. नोय ने अपने करिअर का काफ़ी अहम हिस्सा डिसैलिनेशन जैसे बेहद मुश्किल और ज़रूरी काम में लगाया है. डिसैलिनेशन का मतलब है-समुद्र के पानी से नमक हटाना. इस काम को अंजाम देने के लिए कार्बन नैनोट्यूब ही उनका सबसे बड़ा हथियार है. साल 2006 में नोय ने अपनी बेहद अनूठी सोच पर आगे काम करने की हिम्मत दिखाई. उनका अनुमान था कि शायद नैनोट्यूब समुद्र के पानी से नमक हटाने वाले फ़िल्टर का काम करें. ये ट्यूब इतने महीन होते हैं कि इन्हें सिर्फ़ इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के ज़रिए ही देखा जा सकता है. इनका इस्तेमाल इस बात पर निर्भर करता था कि ये ट्यूब कितने चौड़े हैं. इस काम के लिए यह ज़रूरी था कि इनकी चौड़ाई इतनी तो हो कि पानी के कण इनसे गुज़र पाएं. साथ ही ये इतने पतले भी हों कि नमक के बड़े कण इनके अंदर न जा पाएं, जिनकी वजह से समुद्र का पानी पीने लायक नहीं रह जाता. अच्छी-खासी संख्या में कार्बन नैनोट्यूब को एक साथ रखें तो आप पानी को पीने लायक बनाने वाली दुनिया की सबसे कारगर मशीन बना लेंगे.

कार्बन नैनोट्यूब असल में कितनी छोटी हैं?

मकड़ी के एक जाल जितना महीन

4,000 नैनोमीटर

50 कार्बन नैनोट्यूब

हर ट्यूब 0.8 नैनोमीटर की है

नोय के साथ काम करने वाले ज़्यादातर लोगों ने उनकी इस बात को कल्पना समझ कर खारिज कर दिया. खुद नोय कहते हैं, “इस बात पर यकीन करना काफ़ी मुश्किल है कि पानी इतनी महीन ट्यूब से होकर गुजरेगा.” हालांकि, अगर नैनोट्यूब वाली यह बात सही साबित होती है तो इससे इतना फ़ायदा होगा कि उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है. दुनिया के कई इलाके इस वक्त पीने के पानी की भारी कमी का सामना कर रहे हैं. इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि अभी 1 अरब 20 करोड़ लोग पानी की समस्या से जूझ रहे इलाकों में रहते हैं. यह दुनिया की कुल आबादी का लगभग 16.6 फ़ीसदी हिस्सा है. डिसैलिनेशन (पानी से नमक हटाने) से इसमें मदद मिल सकती है, लेकिन इसके लिए अभी जो संसाधन मौजूद हैं उनकी मदद लेने पर बहुत ज़्यादा ऊर्जा और पैसे की ज़रूरत होगी. क्योंकि इस प्रक्रिया में समुद्र के पानी को गर्म किया जाएगा या उसे जटिल फ़िल्टरों से गुजारा जाएगा. अगर नैनोट्यूब वाले फ़िल्टर कारगर साबित हुए, तो दुनिया भर में बढ़ रही पानी की इस समस्या से काफ़ी हद तक निपटा जा सकेगा.

नोय की टीम ने फ़िल्टर करने के एक सामान्य प्रयोग को शुरू करके उसे रात भर चलने दिया. अगली सुबह, टीम के दो सहयोगियों को लैब के फ़र्श पर पानी फैला हुआ दिखा; असल में नैनोट्यूब से पानी इतनी तेज़ी से निकला कि उसे जमा करने के लिए बनी जगह कम पड़ गई और वह ज़मीन पर फैल गया. शोधकर्ताओं ने बाद में इस बात की पुष्टि कर दी कि पानी से नमक हटाने के मौजूदा प्लांट में इस्तेमाल हो रहे फ़िल्टर के मुकाबले, कार्बन नैनोट्यूब से होकर पानी छह गुना ज़्यादा तेज़ी से बहता है.

भले ही लैब के फ़र्श पर फैला वह पानी काफ़ी कम हो, लेकिन यह नोय के करिअर की सबसे बड़ी खोजों में से एक है. नोय इसे याद करते हुए कहते हैं, “यह प्रयोग बहुत दिलचस्प था क्योंकि किसी को भी इस तरह की उम्मीद नहीं थी.” इतना सब होने के बाद भी अभी एक बड़ी चुनौती पर जीत हासिल करना बाकी है—और ताकतवर कंप्यूटिंग की मदद से यह संभव हो पाएगा.

अच्छी खबर यह है कि वैज्ञानिक एक्ज़ास्केल कंप्यूटिंग का सपना साकार करने के काफ़ी करीब पहुंच चुके हैं (Google के मामले में यह ताकत क्लाउड के ज़रिए आपस में जुड़ी कई मशीनों से आएगी). एक्ज़ास्केल आज के सुपरकंप्यूटर को बौना साबित कर देगा. प्रोसेस करने की इतनी जबरदस्त क्षमता से शोधार्थियों को बहुत मदद मिलेगी. इसके ज़रिए वे इस बात का आकलन कर पाएंगे कि नैनोट्यूब को बेहद बड़े पैमाने के पानी के फ़िल्टर में कैसे इस्तेमाल किया जाए. ये ट्यूब और इनसे होकर गुजरने वाले अरबों कण इतने छोटे हैं कि उनके बारे में ज़्यादा जान पाना बहुत ही मुश्किल है. साथ ही इन्हें असल में तरह-तरह से जांचना भी उतना ही मुश्किल है और इसमें बहुत समय भी लगेगा. एक्ज़ास्केल कंप्यूटर की मदद से बनाए गए नमूनों से इन महीन ट्यूब को काफ़ी बारीकी से समझा जा सकेगा. इससे नैनोट्यूब के ज़रिए पानी से नमक हटाने से जुड़े शोध में भी जबरदस्त तेज़ी आ जाएगी. इतना ही नहीं, इस तकनीक की मदद से मौजूदा समय की पर्यावरण से जुड़ी बड़ी-बड़ी समस्याएं हल करने में भी मदद मिलेगी.

एक्ज़ास्केल से मिलने वाली ताकत का इस्तेमाल

इससे मिलने वाली जबरदस्त तेज़ गति के ज़रिए असंभव लगने वाली चुनौतियों पर जीत हासिल की जा सकती है और कई महत्वपूर्ण खोज का रास्ता भी खुल सकता है.

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सिलिकॉन वैली में इस्तेमाल होने वाले तकनीकी शब्दों से अनजान लोगों को बता दें कि नई जनरेशन के सुपरकंप्यूटर से मिलने वाले हॉर्सपावर, को ही एक्ज़ास्केल कहते हैं. ऐसी क्षमता वाली मशीन हर सेकंड में अरबों-खरबों (क्विनटिलियन) की गिनती कर सकती है. यह फ़िलहाल इस्तेमाल हो रहे सबसे तेज़ कंप्यूटर, चीन के Sunway TaihuLight से लगभग 11 गुना ज़्यादा ताकतवर होगा. इसकी ताकत का अंदाज़ा लगाने के लिए, आप आपस में जुड़े हुए 5 करोड़ लैपटॉप की प्रोसेस करने की क्षमता से इसकी तुलना कर सकते हैं.

दुनिया भर में ऐसी क्षमता वाली मशीन सबसे पहले बनाने की रेस लगी हुई है. ऐसी मशीन से वैज्ञानिक भौतिक विज्ञान से जुड़ी जानकारी जुटाने से लेकर मौसम का पूर्वानुमान लगाने तक के पुराने तरीकों को बेहतर बना पाएंगे. नैनोट्यूब से जुड़ा नोय का शोध भी शायद उन प्रोजेक्ट में से एक हो, जिन्हें कंप्यूटर की ताकत में होने वाली इस जबरदस्त बढ़ोतरी का सबसे पहले फ़ायदा मिले.

Google ब्रेन टीम के शोध वैज्ञानिक जॉर्ज डाल कहते हैं, “कंप्यूटर के काम करने की क्षमता बढ़ने पर पदार्थ विज्ञान, दवाई की खोज और रसायन विज्ञान के क्षेत्र में बहुत फ़ायदा मिलेगा.” डाल बताते हैं कि शोध के इन सभी क्षेत्रों के लिए कणों के कंप्यूटर आधारित मॉडल बनाने की ज़रूरत पड़ती है. यह एक ऐसा काम है जिसे पूरा करने के लिए प्रोसेस करने की बहुत ज़्यादा क्षमता चाहिए. डाल कहते हैं, “हम हर एक कण या पदार्थ की बहुत बारीकी से पड़ताल करते हैं और इस काम में बहुत समय लगता है.”

वह आगे कहते हैं, लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हो जाती. अगर आप कणों की बनावट के बारे में समझने के लिए मशीन लर्निंग का इस्तेमाल करें, तो आपको दोगुना ताकत मिल जाएगी. कंप्यूटर के काम करने की ताकत बेहतर होना मशीन लर्निंग के लिए भी फ़ायदेमंद है. “आप हर तरह की नई-नई चीजों का पता लगाने के लिए पदार्थ विज्ञान के साथ-साथ मशीन लर्निंग का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.”

ये वाकई प्रगति की राह में उठाए गए ऐसे कदम हैं, जिनके ज़रिए पानी से नमक हटाने के लिए बेहतर और सस्ते फ़िल्टर बनाने में मदद मिलेगी. और सिर्फ़ यही एक तरीका नहीं है, जिसके ज़रिए एक्ज़ास्केल-स्तर की कम्प्यूटिंग धरती पर मंडरा रही पीने के पानी की चुनौतियों से निपटने में मदद कर पाएगी.

चूंकि एक्ज़ास्केल कंप्यूटिंग (बेहद ताकतवर सुपरकंप्यूटर), बड़ी मात्रा में डेटा की प्रोसेसिंग करने में भी बेमिसाल होगी. इससे इस तरह के दूसरे प्रोजेक्ट में भी मदद मिल सकेगी. इस प्रोजेक्ट में शामिल Google के इंजीनियर नोल गोरिलक (अर्थ इंजन प्लैटफ़ॉर्म के सह संस्थापक) और टाइलर एरिक्सन (वरिष्ठ डेवलपर) के लिए भी यह काफ़ी मददगार साबित होगी जो इस प्लैटफ़ॉर्म के लिए पानी से जुड़ा विश्लेषण कर रहे हैं. क्लाउड आधारित यह प्लैटफ़ॉर्म दुनियाभर में पर्यावरण से जुड़े डेटा का विश्लेषण करेगा. हाल ही में गोरलिक ने एक बेहद महत्वपूर्ण पहल के लिए यूरोपीय आयोग के जॉइंट रिसर्च सेंटर (Joint Research Centre) के साथ मिलकर काम किया. इसका मकसद दुनिया भर में धरती के ऊपरी भाग पर मौजूद पानी (जैसे कि समुद्र, नदी, झील) का एक बेहतर रिज़ॉल्यूशन वाला मैप बनाना था. इस टीम ने अर्थ इंजन वाले डेटा के ज़रिए, 30 साल से भी ज़्यादा वक्त तक उपग्रह से ली गईं इमेज की छान-बीन की. इन लोगों ने पिछले कई दशकों के दौरान धरती पर बने और खत्म हुए जलाशयों के मैप और उनका पूरा खाका तैयार किया. इससे कई गायब हो चुकी झीलों और सूख चुकी नदियों के साथ-साथ नए बने जलाशयों का भी पता चल पाया है. इस काम से जुड़े आंकड़ों का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अगर इसके लिए ज़रूरी डेटा एक बार में चाहिए होता, तो सिर्फ़ उसे डाउनलोड करने में ही तीन साल लग जाते. एरिक्सन कहते हैं कि यह बहुत बड़ा संग्रह है, लेकिन एक्ज़ास्केल की मदद से टीम इससे भी ज़्यादा जानकारी बेहद तेज़ी से जुटा सकती है. इससे उन्हें और सटीक मैप बनाने में मदद मिल सकती है.

एरिक्सन कहते हैं, “अगर हमारे पास प्रोसेस करने की ज़्यादा ताकत हो, तो हम डेटा के दूसरे स्रोतों पर भी ध्यान दे सकते हैं.” वह कहते हैं कि एक्ज़ास्केल मशीन के ज़रिए दुनिया भर के उस संसाधन का भी बेहतरीन इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसे अभी तक सही तरह से आंका ही नहीं गया है. उनका इशारा सिटीज़न साइंटिस्ट यानी विज्ञान के क्षेत्र में योगदान देने वाले आम लोगों की तरफ़ है. कल्पना कीजिए कि अगर ड्रोन के ज़रिए HD वीडियो बनाने वाले लोग भी पानी का मैप बनाने के इस प्रोजेक्ट में योगदान दें, तो कितना फ़र्क पड़ेगा. एरिक्सन का कहना है, “ऐसा होने पर वाकई बहुत बड़ा डेटा जमा किया जा सकता है.” नदियों और उनके मुहानों के ऊपर DJI Phantoms ड्रोन को उड़ाने वाले हाईस्कूल के बच्चे भी ऐसे वीडियो Google क्लाउड पर अपलोड कर पाते. इसके बाद, एक्ज़ास्केल पावर के ज़रिए Google के दुनिया के बुनियादी मैप में मौजूद जगहों की जानकारी के आधार पर इन वीडियो को जांचा परखा जाता. सब ठीक पाए जाने पर, इन्हें डिज़िटल मैप में शामिल कर लिया जाता. हर किसी को विज्ञान के क्षेत्र में योगदान दे पाने का मौका देना एक बड़ी पहल हो सकती है. इससे खेती से जुड़ी योजना बनाने, किसी भी क्षेत्र को संभावित आपदा की सूचना देने या पर्यावरण से जुड़े बदलावों पर नज़र रखने में भी मिदद मिल सकती है. (दूसरे संगठनों में चलने वाले ऐसे प्रोजेक्ट को समर्थन देने के लिए, Google ने साल 2014 में यह घोषणा की थी कि वह मौसम से जुड़े डेटा के लिए cloud storage में कुछ पेटाबाइट जगह दान दे रहा है. साथ ही 5 करोड़ घंटों तक आंकड़ों से जुड़ी सुविधा देने का भी ऐलान किया गया, जिसे Google अर्थ इंजन प्लैटफ़ॉर्म के ज़रिए इस्तेमाल किया जा सकता है.)

इस सारी जानकारी के बीच डाल यह भी बताते हैं कि प्रोसेस करने की क्षमता बढ़ जाने भर से, कंप्यूटर के इस्तेमाल से जुड़ी हर समस्या हल नहीं हो जाएगी. हालांकि, इसके साथ-साथ वह इससे होने वाले सबसे बड़े फ़ायदे की भी चर्चा करते हैं. उनके मुताबिक यह फ़ायदा इसके इस्तेमाल के उन तरीकों से जुड़ा है, जिनका अभी अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सका है. इसका महत्व समझाने के लिए वह माइक्रोस्कोप के आविष्कार से इसकी तुलना करते हैं—वह डिवाइस जिसकी मदद से लोगों की जान बचाने वाली कई नई चीज़ें खोजी जा सकीं. डाल कहते हैं, “हो सकता है कि अचानक कुछ ऐसा संभव हो पाए जिसे कर पाने के बारे में हमने कभी सोचा भी नहीं.” “शायद इसके ज़रिए हम माइक्रोस्कोप जैसी ही कोई चीज़ बना पाएं—एक ऐसा नया टूल जो दूसरी नई खोजों के लिए भी राह दिखाने का काम करे.”

धरती पर मौजूद पानी में से सिर्फ़ 3 फ़ीसदी ही साफ़ और पीने लायक है

और हम सिर्फ़ उसके बेहद छोटे हिस्से तक ही पहुंच पाए हैं.
साफ़ पानी की कुल मात्रा. इसकी ज़्यादार मात्रा तो ग्लेशियर में, ध्रुवीय बर्फ़ के रूप में और ज़मीन के काफ़ी नीचे मौजूद है.

बेहतरीन कंप्यूटिंग क्षमता को FLOPS में मापा जाता है. यह मेट्रिक लैपटॉप से लेकर सुपरकंप्यूटर तक, किसी भी मशीन पर लागू किया जा सकता है. ज़्यादा FLOPS का मतलब है ज़्यादा रफ़्तार; ज़्यादा रफ़्तार का मतलब है ज़्यादा रिज़ॉल्यूशन या चीज़ों को ज़्यादा बारीकी से देखने की क्षमता; ज़्यादा रिज़ॉल्यूशन होने से कंप्यूटर के ज़रिए बनाई गई इमेज और आकलन ज़्यादा सटीक होते हैं. यह नेशनल ओशिएनिक ऐंड एटमोस्फ़ेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (National Oceanic and Atmospheric Administration) जैसी जगहों के लिए बहुत फ़ायदेमंद होगा. मौसम का पूर्वानुमान, मौसम में बदलाव की जानकारी और समुद्र तट के पास के इलाकों को खतरों की चेतावनी देने के लिए यहां कंप्यूटर की मदद ली जाती है.

एक्ज़ाफ़्लॉप सिस्टम हर सेकंड में 1018 (अरबों खरबों) की गिनती कर सकता है.

NOAA को उम्मीद है कि वह 2020 के दशक में एक्ज़ास्केल सिस्टम इस्तेमाल कर पाएगा. ब्रायन डी. ग्रॉस कहते हैं, “इसकी मदद से हम खराब मौसम के बारे में बड़े स्तर पर और ज़्यादा समय के लिए ज़्यादा सटीक चेतावनियां जारी कर पाएंगे. इससे लोगों की जान और संपत्ति की बेहतर तरीके से सुरक्षा की जा सकेगी.” ग्रॉस इस एजेंसी में हाई परफ़ॉर्मेंस कंप्यूटिंग और कम्युनिकेशन विभाग के डिप्टी डायरेक्टर हैं. वैज्ञानिक भयंकर समुद्री तूफ़ान जैसे मौसम के बेहद खराब हालात का पहले से अंदाज़ा लगा कर उनसे बचने के विकल्प सुझाने में मदद कर पाएंगे. इससे पूरे इलाके में बड़े पैमाने पर होने वाले नुकसान से बचने के साथ ही बड़ी संख्या में लोगों की जान भी बचाई जा सकेगी.

इस तरह की कंप्यूटिंग क्षमता का एक अंदाज़ा देने के लिए, ग्रॉस बताते हैं कि उनका विभाग सन 2000 के दशक में टेराफ़्लॉप वाले सिस्टम (हर सेकंड में खरबों की गिनती करना) का इस्तेमाल करता था. इनके ज़रिए लगभग एक राज्य के आकार तक की मौसम संबंधी जानकारी पर नज़र रखी जा सकती है. आज के समय के सिस्टम पेटाफ़्लॉप (हर सेकंड में क्वाड्रिलियन की गिनती करना) का इस्तेमाल करते हैं और वे एक देश के आकार तक की मौसम से जुड़ी जानकारी पर नज़र रख पाते हैं. एक्ज़ास्केल कंप्यूटिंग की मदद से NOAA और भी गहराई से जानकारी जुटा पाएगा—उदाहरण के लिए ये किसी शहर में गरज के साथ पड़ने वाली बौछारों के बारे में भी बिल्कुल सटीक जानकारी दे पाएगा. इस स्तर के रिज़़ॉल्यूशन से इतनी ज़्यादा जानकारी मिल सकती है, जिससे और सटीक तरीके से पता चल जाएगा कि आने वाला किसी भी स्तर का तूफ़ान कितना भयंकर होगा या कैसे बढ़ेगा. ग्रॉस कहते हैं, “बेहतर रिज़ॉल्यूशन वाले मॉडल, समुद्री तूफ़ान सरीखे बड़े पैमाने पर होने वाले मौसम से जुड़े बदलाव के बारे में ज़्यादा सटीक अंदाज़ा लगा सकते हैं. इससे बारिश और तूफ़ान का और बेहतर अनुमान लगाया जा सकता है.” इसे ऐसे भी समझ सकते हैं: आज से कुछ साल बाद मौसम का पूर्वानुमान देने वाले लोगों ने अगर आने वाले 5 दिनों के मौसम का गलत अनुमान बताया, तो उनके पास इसके लिए कोई बहाना नहीं रहेगा. और हमें इस बात की लगभग सटीक जानकारी मिल जाएगी कि अगली बार भयंकर तूफ़ान कब और कहां तबाही मचाने वाला है.

एक्ज़ास्केल की मदद से साफ़ पानी की समस्या का हल निकाला जा सकता है

ज़्यादा तेज़ सुपरकंप्यूटर उन शोधकर्ताओं के लिए मददगार होंगे, जो पानी से नमक और गंदगी हटाने वाले फ़िल्टर पर शोध कर रहे हैं ताकि दुनिया में पीने लायक पानी की मात्रा बढ़ सके.

साफ़ पानी ढूंढ पाना दुनिया भर के लोगों के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. आज दुनिया के कई इलाकों पर सूखे का खतरा मंडरा रहा है. सऊदी अरब में ज़मीन के नीचे खत्म होने की कगार पर पहुंचे पानी के स्तर, ब्राज़ील में बंजर हो चुकी ज़मीन से लेकर अमेरिका में खेती के मुख्य इलाके भी इससे प्रभावित हो रहे हैं, जिसमें ग्रेट प्लेन्स की ज़मीन में पड़ रही दरारें इसका हाल बयां करने के लिए काफ़ी हैं. अमेरिकी खुफ़िया विभाग की साल 2012 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि साफ़ पानी की कमी राष्ट्रीय सुरक्षा को भी प्रभावित कर सकती है. ऐसा अनुमान है कि साल 2030 तक, दुनिया भर में साफ़ पानी की सप्लाई से 40 फ़ीसदी ज़्यादा पानी की ज़रूरत होगी.

तेज़ी से बढ़ता तापमान, घटती बारिश, बढ़ती जनसंख्या, प्रदूषण और गरीबी—इन चुनौतियों को देख कर तो ऐसा लगता है कि सफलता मिलना मुश्किल है. लेकिन इन सब के बाद भी अलेक्सांद्र नोय को यह यकीन है कि एक्ज़ास्केल मशीन की मदद से वह नैनोट्यूब वाली ऐसी मेम्ब्रेन बना पाएंगे, जो पानी को साफ़ करके लोगों की ज़िंदगी बचाएगी. वह कहते हैं, “इतने शक्तिशाली कंप्यूटर की मदद से हम लैब में जाने से पहले पूरी प्रक्रिया का एक नमूना देख पाएंगे.” “इससे वाकई बहुत मदद मिलेगी क्योंकि इसके ज़रिए हम अपना पूरा ध्यान अहम प्रयोगों पर लगा पाएंगे.” हालांकि, अभी भी बहुत कुछ जानना बाकी है: अभी तक वह सटीक माप तय नहीं हो पाई है जिसके आधार पर पानी नैनोट्यूब से होकर गुज़रेगा. इसके अलावा, यह भी तय नहीं हो पाया है कि नैनोट्यूब को किस तरह की मेम्ब्रेन में लगाना सबसे कारगर होगा और उन्हें किस तरह से व्यवस्थित किया जाना चाहिए. राम्या तुन्युगुंटला कहती हैं, “कंप्यूटर पर नैनोट्यूब के इस्तेमाल की पूरी प्रक्रिया का नमूना देखने वाली कई स्टडीज़ में अभी भी अलग-अलग तरह के आंकड़े दिखते हैं.” यहां बता दें कि राम्या पोस्टडॉक्टोरल शोधार्थी हैं और नोय के साथ काम करती हैं. वो आगे कहती हैं, “हमें इस चुनौती से पार पाना ही होगा.” नोय की तरह वह भी मानती हैं कि ज़्यादातर ताकतवर सुपरकंप्यूटर उनके शोध को अागे बढ़ा पाएंगे: “एक्ज़ास्केल की मदद से हम पूरी प्रक्रिया के ज़्यादा बड़े नमूने देख पाएंगे और ज़्यादा डेटा जुटा सकेंगे.”

साल 2023 में, लिवरमोर लैब में एक नया कंप्यूटर इंस्टॉल किया जाएगा. सिएरा (Sierra) नाम की यह मशीन मौजूदा सिस्टम से चार से छह गुना ज़्यादा तेज़ी से आंकड़ों की गिनती कर पाएगी. शायद यह मशीन एक्ज़ास्केल का सपना साकार होने का आखिरी चरण हो. इसके बाद FLOPS (बेहद शक्तिशाली कंप्यूटिंग की क्षमता का माप) के आधार पर किए जाने वाले कटाक्षों का अंत हो जाएगा. बल्कि, उस वक्त तक तो एक्ज़ास्केल कहीं और आ चुका होगा. लिवरमोर के एक मुख्य शोधार्थी कहते हैं कि साल 2020 के आस-पास, संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली एक्ज़ास्केल मशीन दिख जाएगी. वहीं, इस रेस के सबसे तेज़ खिलाड़ी माने जाने वाले चीन का दावा है कि वह इस साल के अंत या अगले साल की शुरुआत तक इसका एक प्रोटोटाइप यानी नमूना पेश कर देगा. कुछ लोगों ने इसे “सुपर-सुपरकंप्यूटर” का नाम दिया है.

दो बार गॉर्डन बेल पुरस्कार Gordon Bell Prize से सम्मानित किए गए और ज़ूरिक स्थित IBM रिसर्च लैब में एक्ज़ास्केल के विशेषज्ञ कोस्टस बेकस कहते हैं कि यह सफ़र एक्ज़ास्केल पर आकर रुक नहीं जाएगा. वह कहते हैं कि कंप्यूटर की ताकत इसके बाद भी बढ़ती रहेगी. उन्हें उम्मीद है कि ऐसा वक्त भी आएगा जब कंप्यूटर का इस्तेमाल करके हम सिर्फ़ मॉलिक्युलर लेवल पर नहीं, बल्कि एटमिक लेवल पर भी ब्रह्मांड की जांच-पड़ताल कर पाएंगे.

बेकस कहते हैं, “एक्ज़ास्केल बन जाने का मतलब होगा कि हम कार्बन नैनोट्यूब के काम करने के तरीके जैसी बेहद मुश्किल चीज़ों को भी, काफ़ी कम समय में ज़्यादा आसानी से समझ सकेंगे.” बेकस आगे बताते हैं, “एक्ज़ाफ़्लॉप से हर चीज़ का हल नहीं निकल जाएगा. हमारी समस्याएं बहुत सारी हैं. हालांकि, इसकी मदद से धरती को काफ़ी बेहतर ज़रूर बनाया जा सकेगा.”

उधर लॉरेंस लिवरमोर में अलेक्सांद्र नोय और राम्या तुन्युगुंटला अपने मकसद में जुटे हुए हैं. वे एक और नैनोट्यूब को टेस्ट सेल में लगाते हैं, स्विच चालू करते हैं और फिर नया डेटा जुटाते हैं. उम्मीद है कि जल्द ही वे एक्ज़ास्केल कंप्यूटिंग की मदद से अरबों लोगों की जिंदगी बदल पाएंगे.

रेने चुन न्यूयॉर्क के एक लेखक हैं. उनके लेख The New York Times और The Atlantic से लेकर Wired और Esquire जैसे प्रकाशनों में आ चुके हैं.

जस्टिन पोलसिन के ऐनिमेशन
मैथ्यू होलिस्टर के चित्र

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