जब ड्वेन कॉलिन्स की बेटी लिबर्टी आंखों की एक दुर्लभ बीमारी के साथ पैदा हुई, तो उन्हें तमाम कोशिशों के बावजूद ऐसी कृत्रिम आंख नहीं मिल पाई जिससे उसे तकलीफ़ न हो. इसलिए, ड्वेन ने यह काम खुद ही करने की ठान ली.
लिबर्टी कॉलिन्स को जन्म से माइक्रोप्थल्मिया था, जिससे वह पूरी तरह से देख नहीं पाती थी. इस बीमारी की वजह से ही लिबर्टी की एक आंख दूसरी आंख से काफ़ी छोटी रह गई. लिबर्टी को तुरंत कृत्रिम आंख की ज़रूरत थी, क्योंकि आंखों से पड़ने वाला दबाव बचपन के शुरुआती दौर में चेहरे के विकास में मदद करता है. कृत्रिम आंख सिर्फ़ सुंदरता के लिए नहीं होती है - इसके बिना चेहरा ठीक से विकसित नहीं हो पाता. इस परिवार को ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के कई क्लिनिक में दो साल तक ढूंढने पर भी ऐसी कृत्रिम आंख नहीं मिल पाई जो लिबर्टी को फ़िट आ जाए. कृत्रिम आंख को फ़िट करवाने का एक अनुभव इतना दर्दनाक था कि लिबर्टी बेहोश हो गई.
"कितना अच्छा हो अगर मैं खुद लिबर्टी के लिए एक कृत्रिम आंख बना पाऊं?" ड्वेन कॉलिन्स
तेल निकालने वाली कंपनी में काम कर चुके ड्वेन ने YouTube पर ब्रिटेन के कृत्रिम आंखें बनाने वाले मशहूर विशेषज्ञ जॉन पेसी-लौरी का वीडियो देखा. इसमें कृत्रिम आंखें बनाने के बारे में विस्तार से बताया गया था. ड्वेन ने वीडियो को कई बार देखा. उन्होंने अपने घर के पीछे एक कमरे में अस्थायी क्लिनिक बनाया और बिना किसी चिकित्सा अनुभव के कृत्रिम आंख बनाने की कोशिश करने लगे.
कृत्रिम आंख बनाना एक ऐसी कला है, जिसमें तकनीकी कौशल, बारीकियों पर खास ध्यान देने की क्षमता के साथ कारीगरी की भी ज़रूरत होती है. आंखों की जगह लेने के लिए कृत्रिम आंखें बनाना ही काफ़ी नहीं है - इसका मकसद यह है कि इसमें कोई भी कमी न रहे.
"मैंने जो सीखा है, अगर मैं उसे किसी और से न बाँट पाऊं तो उसका क्या फ़ायदा?” जॉन पेसी-लौरी
जॉन अपने वीडियो में एक अनोखे तरीके के बारे में बता रहे हैं. वह आंखों के सॉकेट (कोटर) की छाप लेकर शुरुआत करते हैं. इसके बाद जिस तरह से दांतों के डॉक्टर नकली दांत बनाते हैं, वैसे ही वह मोम के ज़रिए इस छाप को आकार देते हैं.
उम्र: 10 हफ़्ते
उम्र: 12 हफ़्ते
उम्र: 4 महीने
उम्र: 5 महीने
उम्र: 6 महीने
उम्र: 7 महीने
उम्र: 8 महीने
उम्र: 9 महीने
उम्र: 10 महीने
उम्र: 1 साल
उम्र: 14 महीने
उम्र: 18 महीने
उम्र: 2 साल
उम्र: 3.5 साल
उम्र: 4 साल
उम्र: 4.5 साल
आंख की पुतली को बेहद बारीकी से हाथ से रंगा जाता है और धारियों या नसों को सिल्क कॉटन के धागे से उकेरा जाता है. शुरुआत से अंत तक की पूरी प्रक्रिया में 3 दिन लगते हैं. जॉन हमेशा उन चीज़ों को लोगों तक पहुंचाते रहते हैं, जो उन्होंने YouTube पर सीखी हैं. उनका मकसद कृत्रिम आंखें बनाने के पेशे से जुड़े लोगों को प्रेरित करना और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को इस पेशे से जोड़ना है.
ड्वेन ने 6 महीने तक खुद से कृत्रिम आंख बनाना सीखा और इसके बाद वे एक ऐसी खूबसूरत कृत्रिम आंख बना पाए, जो उनके हिसाब से लिबर्टी के लिए काफ़ी अच्छी थी. शुरुआती सफलता के बाद ड्वेन ने आंख बनाने के अपने इस नए जुनून को पेशे में बदलने का फ़ैसला किया. वह अपनी ज़िंदगी भर की बचत को खर्च करके यूनाइटेड किंगडम में जॉन के पास जाकर उनसे प्रशिक्षण लेने लगे.
ड्वेन कहते हैं, “मैं मरीज़ों के साथ किए जाने वाले व्यवहार को बदलना चाहता हूं. और मैं नहीं चाहता कि दूसरे बच्चे भी लिबर्टी की तरह दर्द से तड़पें.”